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Sunday, October 4, 2015

मैंने लिखी.… कुछ पंक्तियाँ


'दरहसल'
अभी, तुम्हारे ही बारे में सोच रहा था ।

और तुम आ गए ।
अच्छा संयोग है, या फिर जीवन ही एक संयोग है । जो भी कहो, बात एक ही है !
आज 'समझ' आयी, में कितना नासमझ हूँ ।

या कहें, नींद से आँख खुल गयी ! 'और'
दिखाई पड़ा ।

यहाँ कोई 'घर', "घर" नहीं है । सब रास्ते की सराएँ है !

'तुम्हारी'
भाषा मे कहें तो,
happy realisation !

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हक़ है
'प्रत्येक' को,
की अपनी जिंदगी जिए ।

जैसा वो चाहे,
लेकिन फिर तुम 'न' कह सकोगे कुछ
और याद रखना,
तुम ही तुम्हारे होने के ढंग के जिम्मेदार होओगे !

किसीको हक़ नही,
दूसरों की प्रकृति में विरोध करें !

सोचा था,
शायद भटका-भुला...
वापस 'घर' आ सकें !

मगर समय तुमने गवाँ दिया !
बस अब यही प्रार्थना है,
की
समय 'तुम्हे' न गवाँ दे ।

यहीं कहूँगा,
और
बार बार कहूँगा !
अब तो जागो...
अपने 'इस' रूप को जरा 'देखो'
अब तो आँखे खोलो,
'इस' स्वप्न से जाग जाओ...
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अब वही करता है...
वही लिखवाता है !

हमको तो
हमारी ही कुछ खबर नही
शायद
हम ही वहाँ है,
जहाँ से
हमको भी हमारी खबर नही आती !

न जानें कौन है,
कहाँ से आये है...!
और क्या कर्तव्य है
हमारा

ना कोई रास्ता...
ना कोई मंजिल....!
'भटक'
रहीं है ख़लाओं में जिंदगी मेरी ।

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कहा है
इस उम्मीद में,
शायद तुम भी 'जाग' जाओ
और 'देख' सको उसे...
जो देखकर भी दिखाई नहीँ पड़ता !

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अब
दखल नहीँ दूंगा
तुम किसीके भी जिंदगी मे, तुम तो समर्थ हो ।
अपने पर निर्भर हो !
और ऐसे भी,
तुम्हारा उत्तरदायित्व 'तुमपर' निर्भर है ।

बस
हमें तो इतना ही
'समझ'
रहा है !
सब बदल रहा है, सब बदल रहा है ।

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कैसे कहूँ
मैंने लिखा है ?

वो लिखवाता है,
वहीं करवाता है ।

हम तो बस देखें चले जाते है.. जैसे राह के किनारे
धूल उड़ गयी !
वैसे हम भी उड़ रहें है, सुंखे पत्तों के भांति न कोई मार्ग है,
न कोई दिशा है,

बस चले जातें है.....
जहाँ 'हवाएँ' ले जाती है ।

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बस
कहके इतना
चुप बेठना चाहते है !

कहके भी इतना,
कुछ भी न कहाँ जाता है,
और न समझा जाता है ।

बस वह चूक जाता है,
जो 'अभी' है । :'(

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आज एक और नया
'रास्ता'
दिखा दिया ए तूने-ए-अजनबी मुसाफिर हूँ,
बस चलता चला जाता हूँ । 

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बस अब...
तुम अपनी जिंदगी जिओ...
जैसे तुम चाहो..
उतना काफी है...

हम तो मुसाफिर है..
चलते चले जाते है...
आज फिर तुमने एक राह दिखा दी... बस हवाओं मे उड़े चले जाते है...!

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Monday, August 3, 2015

On Friendship Day

It's a really great and beautiful moment in my life.!
This friendship day.!

I was thinking what the real friendship means, what is really the meaning of friendship..!
Then I remembered a very beautiful saying of Mahavira.!
मैत्रि मै सव्व भुवेसु । वैरं मज्जिन् के नई ।
Means, all the things in the world, no matter whether living or non living, they all are my friends.!
everything, everywhere, every moment is my friend.
If the whole universe is my friend, how can I have any enemy ! The whole world is filled with a Joy & Happiness n Love.

I was thinking what should give to u today, then once again I remembered the beautiful saying of Gautama the Buddha.
सब्बा दानम् : धम्मा दानम् : जिनाधि !
The gift of truth excels all other gifts, and my truth is, Love, Joy, Happiness..!

Love you my dear friends..!
Wish u a very happy friendship day..!
your friend - ChuangThustra.

Tuesday, July 21, 2015

ध्यान के पूर्व

                     A  Reminder  before  a  Meditation


Written by Suyog Naikwade

                   विपश्यना ध्यान के पूर्व कुछ बाते समझले | या फिर कोई भी ध्यान करने से पहले अगर यह बाते समझले तो ध्यान करनेमे ज्यादा आसानी हो सकती है | आप अपने आप मै ज्यादा से ज्यादा गहरे जा सकते है |
अभी मैं यह १० दिन विपश्यना ध्यान केंद्र के बारे मै लिख रहा हु | इस article को ध्यान करनेसे पूर्व एक बार पूरी तरह बुद्धि से समझ लीजिये, फिर जिस दिन आप ध्यान करेंगे उसके पहले दिन रात को अगर आप फिर से एकबार इसे पढ़े तो ज्यादा फायदा होता, क्यूंकि तब आपके पास अनुभव भी होगा | कुछ बाते ऐसी है जो सिर्फ बुद्धी या मन से नहीं समझी जा सकती | मैंने अब तक ध्यान को जितना समझा है, या इसका जितना अभ्यास किया है उस आधार  पर यह लिख रहा हूँ, ताकि आपको वहा तक पहुचने मै आसानी हो सके या फिर शायद आप उससे भी गहरे जा सके |

पहली बात यह समझ लीजिये, की ध्यान क्या है ?
ध्यान का मतलब meditation नहीं है, ध्यान बहोत ही अनूठी घटना है | सिर्फ बुद्धि या तर्क से इसे समझा नहीं जा सकता, इसे तो सिर्फ अनुभव से ही समझा जा सकता है | जैसे की समझ लीजिये को आपने अपने जिवन मै कभी भी शक्कर (sugar) खाई ही नहीं है, और मै कितना भी शक्कर के बारे मै बताता जाऊ, कुछ भी नहीं होगा, सिर्फ पाणी शब्द से किसीकी प्यास नहीं बुझती, इसके लिए तो पाणी पीना ही पड़ेगा | तोह ध्यान क्या है ? ध्यान है मन के पार जाने की कला, या फिर आप इसे कह सकते है, स्वयं में जाने की कला, या फिर अपने को पहचनाने का मार्ग | ध्यान बहोत scientific है | क्यूंकि इसकी शुरुवात ही प्रयोग से होती है,आप खुद प्रयोग करके देखे, फिर मान लीजिये | बुद्ध ने ध्यान को बड़ा ऊंचाई पर उठाया है | बुद्ध का मार्ग संदेह से शुरू होता है, जिस बात को आप जानते नहीं, उसे मानना मत, उसे पूछ-पूछ कर, संदेह कर-करके जानने की कोशिश करे | We can divide knowing in three parts – one is, knowledge which we have already known, other one is still unknown, but at one day perhaps we may know it, but the third part which we are concern to is  - unknowable, that which cannot be known, and meditation is working with unknowable.
जीसस से किसीने पूछा तुम्हारे प्रभु के राज्य मै कौन जा सकेंगे, जीसस ने जवाब दिया, वही जो छोटे बच्चे के भांति होंगे, Only those who are like a child can enter in my kingdom. अब इसे समझ लीजिये, like a child, not a child, मतलब अगर आप ध्यान मै बिलकुल ही छोटे बच्चे के भांति रहे, एकदम हसते-खेलते, और उससे भी बड़ी बात – innocent. Whenever you go into a meditation, whenever you go into yourself, create a profound ignorance in you. इसे आप ध्यान की पहली शर्त मान लिहिये, बिलकुल अज्ञानी होकर ध्यान मै जाए, आप कुछ भी नहीं जानते, जितना भी जाना होगा, वह सब बाहर का है, भीतर से आप बिलकुल ही खाली है, सब जानना चाहे वह किताबों से हो या फिर दूसरों से सुना हुआ और हो, बस कान मै शब्द घुस गए है, मन मै एक संस्कार बन गया है | 
अब सूत्र को समझे, बुद्ध कहते है, आप मन में जो कुछ भी डालोगे, उससे आपके मन मै एक संस्कार हो जायेगा, और याद रखना, हमारी हर आदते ध्यान के लिए बाधा बनेगी | इसे हमेशा याद रखिये, आप जो कुछ भी कृत्य कर रहे हो, उसे होशपूर्वक कीजिये, चाहे आप खाना खा रहे हो तो, आपने हट उठाया, फिर निवाला लिया, फिर आप उसे चबा रहे है, फिर पेट के अंदर गया, कहा तक अंदर गया, उस समय गले मै क्या संवेदनाये उठी इस सबको देखना है | याद रखना, इसे सिर्फ देखना है, भीतर से, आप जितना इसका अभ्यास पूर्वक यह करेंगे आप को difference मालूम होगा | इस सूत्र को समझ ले, ध्यान का मतलब है देखना, हर चीज को, हर घटना को साक्षीभाव से देखना, बस देखने की सब कला है | और इसे याद रखिये, जब भी आप देख रहे है, आप उससे अलग है, जिसके भी आप दृष्ट हो सकते है, याद रखना वह तुम नहीं हो, तुम उससे अलग हो | और इस ध्यान विधि मै अगर आपका साक्षीभाव जग गया, अगर आप सिर्फ साक्षीभाव से हर घटना को देखने मै समर्थ हो सकते है तो फिर आपके जिवन मै बहोत बड़ी क्रांती होगी |
देखने का मतलब सोचना नहीं है, जब भी आप देख रहे होगे तब उसके बारे मै सोचे मत | बिलकुल भी मत सोचना, सोचने से आपका देखना बंद होता जायेगा, कभी आपने खयाल किया, कोई कार, या इन्सान आपके सामने से निकल जाता है और आपको पता भी नहीं चलता, क्यूंकि आप सोचने में खो गए थे | सिर्फ देखना, उसपर किसी तरह की टिपण्णी मत देना, जैसे तुम्हे कुछ लेना देना नहीं है, सिर्फ देखते रहना, उपेक्षा से देखते रहना, फिर आपमें साक्षीभाव का जन्मेगा | जो कुछ भी घटित हो रहा है, यहाँ तक की आपके श्वास का अंदर-बाहर जाना भी, आप पलक भी झपके तो भी उसके साक्षी रहे, witness रहना सीखे | याद रखना आप उससे अलग है, बस देखते रहे, बिना उसको तोंले | शुरू शुरू मै आपका ध्यान खो-खो जायेगा, फिर-फिर याद रखना, बस देखते रहना, इसको George Gurdjieff  ने बड़ा अच्छा नाम दिया है – self remembering.

ध्यान के पूर्व –
ध्यान के पहले कुछ बातें समझ ले | ऊपर से यह बहुत ही सरल और सीधा दिखाई देगा लेकिन जब आप ध्यान मै जाओगे तब आपको इसकी गहराई समझ मै आएगी | वैसे ऊपर से हम समझते है की हमें सब पता है | बस आँख बंद कर दि की हो गया ध्यान | नहीं, यही सबसे बड़ी गलती है | यही हमारा भ्रम है, यही हमारी निद्रा है, ध्यान कोई सरल या इतनी भी आसन बात नहीं है, की बस बैठे की हो गया, बलकी ध्यान दुनिया का सबसे मुश्किल काम है, और सबसे बड़ी मुश्किल यह है की हम जानते है | हमारे जानने का भाव की हमारे बिच की सबसे बड़ी दिवार बनेगी, एक बात याद रखना, हम कुछ भी नहीं जानते, जो कुछ भी हमने जाना है, स्वप्न मै जाना है, वह सत्य नहीं है | जो कुछ भी जाना है वह हमने या तो किसीसे सुना है, या फिर किसी किताब से ग्रहण किया है, यह रखना, जानना इतनी भी आसन बात नहीं है, की पढ़ लिए और हो गया, जब तक कोई बात तुम्हारे भीतर से न आये, जब तक वह तुम्हारी हड्डी, मांस, मज्जा ना बने, तब तक तुमने कुछ भी जाना नहीं है, सब उधार है | यह जानने का भाव छोड़ दो, सब कुछ जन्म के बाद लोगोंने तुम्हे दिया है | उसमे रत्तीभर भी तुम्हारा नहीं है |
ध्यान करनेके पूर्व एक बात सबसे जरुरी होती है की आप पहले अपने मन को समझले, अगर यह बात आप नहीं समझे तो फिर आप पुरे वक़्त सिर्फ आपके मन से झगड़ते रहोगे और आपके हात मै कुछ भी नहीं लगेगा, सिवाय निराशा के, फिर आप ध्यान को ही गालिया दोगे, क्यूंकि आपका अहंकार यह मानने को तैयार ही नहीं होगा की गलती तुम्हारी थी, इंसान हर तरह से अपने अहंकार को बचाता है |
कुछ बातें समझ ले, पहली तो यह की मन आपकेही शरीर का एक भाग है, बड़ा सूक्ष्म और बड़ा जटिल, तुम सिर्फ मन नहीं हो | जन्म से पहले तो तुम्हे मन नही था, तब भी तुम थे, वही तुम्हारा असली स्वभाव था, और उसीको ही जानना ध्यान है | मन एक द्वैत है, सतत एक quarrel है, यह सतत हर बात पर झगड़ता रहता है, सतत आपको सुझाव देता रहता है, जरुरत होती भी नहीं, और आपके मन मै बातें चलती रहती है, सोते वक़्त भी आपके दिमाग मै सतत यह सब चलता रहता है | मन हमेशा हर चीज को दो खंडो मै बांट देता है, एक अच्छा और एक बुरा, मन कभीभी तटस्थ नहीं रहता, equanimous नहीं रहता | और ध्यान है हर चीज को तटस्थ भाव से देखना, यही विपश्यना है | हर चीज को तटस्थ भाव से देखो, जैसे तुम्हे कुछ लेना देना नहीं है, जैसे रास्ते पर से गाड़िया जाती रहती है, तुम्हे कुछ लेना देना नहीं की कौन आया और कौन गया | उसकी उपेक्षा करते रहो, सिर्फ देखो, सोचो मत | और एक महत्वपूर्व बात की, आपके मन का एक बहुत घटिया स्वभाव हो गया है, कुछ भी हो, उसके नाम दे दो | हर एक को define करते रहते हो आप, बिना जरुरत के, अहंकार को इससे बड़ी तृप्ति मिलती है की मै जानने वाला हो गया, अब मुझे पता चल गया | जैसे किसी बच्चे ने पूछा की यह क्या है, किसीने बताया की यह गुलाब है | और बच्चे को बड़ा अहंकार की तृप्ति मिली की चलो मुझे पता चल गया, की यह गुलाब है | लेकिन क्या पता चला आपको ? कुछ भी तो नहीं, गुलाब का फुल वैसे का वैसे ही है, सिर्फ उसे नाम देने से कुछ भी नहीं होता | उसे तोह पता भी नहीं की तुमने उसे गुलाब कहा है, जो गुलाब के भीतर है उसे तो तुम जानते तक नहीं, जो गुलाब को गुलाब बनाता है उसके बारे मै तुम्हे कुछ भी तो पता नहीं है | याद रखना तुमने कुछ भी जाना नहीं है, सब उधार के शब्द है सिर्फ | केवल शब्द, और शब्दों का कभी सत्य से मिलाना हुआ है ?
ध्यान मै आपको सबसे कठिनाई आएगी, वह है आपका मन, वह तुम्हे हमेशा सताता रहेगा, हमेशा कहता रहेगा की यह क्या पागलपन कर रहे हो, अच्छा होता घर बैठ के आराम से TV ही देख लेते, यह किस झंझट मै पड़े है हम | मन आपको परेशान करेगा, क्यूंकि ध्यान तो तुम कर रहे हो, मन तो दुसरोंका है, मन मै बने सब विचार बाहर से आये है, फिर यह मन हमारा कैसे हुआ ? यह भी दूसरों का है, यह भी उधार है | मन आपको ध्यान न करने देगा, हमेशा बाधा डालेगा, कुछ ना कुछ सुझाव देता रहेगा, पुराणी यादे, बचपन के दिन कुछ भी हो, आपके सामने प्रकट करके देगा | मन की बात मन पर ना ले, इसे छोड़ दे, जैसा है इसे छोड़ दे, यह भी न कहे की यह विचार नही करना है, मन तो बड़ा क्षणिक है, विचार आते है, जातें है, लेकिन तुम तो हमेशा यहाँ हो, केवल एक साक्षी के भांति, just remain a witness, you are a witness.
       आपके सारे आदर्श, सारे संस्कार, सभी धर्म, जात, देश, सब कुछ झूठा है, क्यूंकि यह सब मन से बने है, अगर मन नहीं होता तो यह भी नहीं होता | इन सब को छोड़ दे, जितना आप इससे चिपके रहोगे, उतना ही आपको मन के पार उठाना मुश्किल हो जायेगा, ऐसा समझे की तुम इस दुनिया मै नये हो, तुम्हे कुछ भी पता नहीं है, सब कुछ अब तुम्हे खोजना है, अपने भीतर झांकना है | मन आपको परेशान करने वाला है, आपको हर एक सुझाव देगा, अब यह व्यक्ति व्यक्ति पर निर्भर करता है | आप बस साक्षी मात्र रहिये | मन को झोड़ दे, उससे झगडा भी मत करिए, बस उसकी उपेक्षा कर दीजिये, और आप ध्यान करते रहिये |



ध्यान करते वक़्त  -
ध्यान मै आपको सिर्फ एक बात हमेशा याद रखनी है, की आप केवल एक साक्षी मात्र है, और कुछ भी नहीं | आप सिर्फ द्रष्टा है, केवल दर्शक है | ध्यान को हम तीन stages मे divide कर सकते है, लेकिन याद रखना, हर वक़्त आप सिर्फ साक्षी है, witness है, दर्शक है |
पहला चरण है –
आप अपने physical movements को observe करे, मगर आप अब doer नहीं है, आप केवल साक्षी है, इन्हें तटस्थ भाव से देखे, सिर्फ observe करे, यह मत कहे की यह सही है और यह गलत, सिर्फ observe करे | बैठे हो तो यह याद रखे की आप बैठे है, self-remembering is must. चलते वक़्त observe करे, की आप चल रहे है, कैसे चलते है वह देखे, चलते वक़्त आपके पैरों मै क्या क्या अनुभव होता है, पैसे कैसे उठता है, कैसे निचे जाता है, जब जमीन पर पड़ता है तो कैसा प्रतीत होता है, आपके पैर मे अगर चप्पल हो तो उसे भी हर वक़्त feel करना है, कपड़ो के touch हो हर वक़्त, हर समय जागरूक होकर देखना है | चाहे आप कुछ भी कर रहे हो,  हर एक चीज को देखे, एक साक्षी के भांति, हर वक़्त आपके भीतर क्या बदलाहट होती है वह देखते रहिये | पाणी भी पिए तो भी याद रखना, कहा कहा पर पाणी स्पर्श होता है, कहा कहा पर अनुभव आता है, पाणी पेट के भीतर कैसे जाता है, पेट के भीतर पाणी कैसे ठहर जाता है, अंदर ठंड अनुभव कहा कहा होती है, कितनी देर होती है, मुँह गिला कितनी देर रहता है, गले मै स्पर्श कितनी देर तक चलता है | सब कुछ, एकदम बारीक़ से, बड़े ही सोच समझ कर, बडे ध्यान से आपको करना है | जो भी आप करे, सब कुछ sense करे, स्पर्श हो, गंध हो, कुछ भी हो, उसे जानते रहिये, लेकिन केवल एक साक्षी मात्र होकर आप जानते रहिये | आप उससे अलग है यह जानकर अलग हो जाईये, इसे एक सूत्र समझे, जो भी जाना जा सकता है, वह तुम नहीं हो, तुम दर्शक हो | जानने मै द्वैत होता है, जाननेवाला और जो जाना जाए वह, तुम अद्वैत हो, इसलिए जो भी जाना जाए वह तुम नहीं हो | तुम केवल साक्षी हो | इस तरह अपने हर body movements को बड़े समग्रता से, बड़े ध्यान से देखे, और आप चकित हो उठोगे, एक नया अनुभव आपको आएगा, बड़ा अनूठा अनुभव, जो आपको आपकी पूरी जिंदगी मै नहीं आया था | तब आपको पहली बार पता चलेगा की तुम कितने नींद मे सब काम करते हो | सब कुछ नींद मै करते हो तुम | सब सब कुछ तुम्हे समग्रता से करना है |
खाने के बारेमे –
       जगत मै जितने भी पशु है, पौंधे है, या कुछ भी जो जीवित है, वह सब कुछ सिर्फ और सिर्फ हिंसा के आदि है, ऐसा नहीं की वह हिंसा करते है, बलकी बात यह है की उनकी पूरी जीवनी ही हिंसा है, वह उससे अलग थलग नहीं है, दोनों separate entity नहीं है, एक जिव हो गए है | तुम तो इंसान हो, दिनिया मै इंसान एक अकेला ऐसा जिव है जिसके पास हँसने की कला है, बाकी और कोई भी नहीं हस सकता | तुम्हारा असली निसर्ग, तुम्हारा असली नृत्य, तुम्हारे भीतर का गीत सिर्फ और सिर्फ हँसी है, और वह हंसी जो मौन से निकले, इसे समझने में कठिन होगा, लेकिन इतना भी कठिन नहीं है, अगर तुम ध्यान मै गहरे उतरो तोह यह बात अपने आप पूरी स्पष्ट हो जाएगी | जगत मै जितने भी प्राणी मात्र है वह अपनी सारी हिंसा अपने नाखूनों से, अपने पंजों से, या फिर दातोंसे करते है | यह बात सही है की इंसान अपनी प्रक्रति भूल गया है, इसलिए इंसान की सारी हिंसा उसके पुरे शरीर मै अवतीर्ण हो गयी है | तुम्हारी आवाज हिंसक हो गयी है, तुम्हारे आँखों से प्रेम के झरने नही बहते, सिर्फ आंसू और हिंसा ही है उसमे, जब तक तुम ध्यान ना करो | इसेकैसे बदले ? पहली बात हो यह है की इसे पूरी तरह से अपने पुरे मन से स्वीकार कर लो की तुम मै हिंसा है, कम ज्यादा का सवाल नहीं है, हिंसा कभी कम-ज्यादा होती नहीं है, या तो होती है, वरना नहीं होती | तोह तुममे हिंसा है इसे स्वीकार कर लीजिये, तुम्हारे इस स्वीकार मै ही तुम्हारी हिंसा तिरोहित होती जाएगी | अब सूत्र को समझ लें – जब भी तुम खाना खा रहे हो तब बड़ी समग्रता से, बड़े होश से खाइये, हर एक निवाला अपने भीतर लेते वक़्त पूरी तरह alert रहिये | निवाला अच्छी तरह से चबाना सिख लीजिये, तुम आधा निवाला चबाते हो और उसे अपने पेट मै ढकेल देते हो, ऐसा ना करें, जब तक निवाला, हर एक घास पूरी तरह से liquid की तरह नहीं होता, तब तक पुरे पेट मै धकेलनेकी जल्दी ना करें | इस समय पुरे जागरूक रहिये, चबाते वक़्त, निवाला पेट के अंदर जाते वक़्त, हर वक़्त conscious रहिये, keeping your consciousness is a fundamental key of your growth, be alert, just be. और कुछ दिनों मै आप चकित हो उठोगे आपकी हिंसा धीरे धीरे तिरोहित होने लगी, जब तक हिंसा है तब तक हम नींद मै है, हमें उसका पता नहीं चलता, हिंसा मै हम अपने को भूल जाते है | जब हिंसा तिरोहित होगी तब तुम्हे पता चलेगा उसके बारेमे, उसके पहले जो कुछ भी होगा वह पूरा स्वप्नवत होगा, नींद मै स्वप्न देखा ऐसा होगा | और कुछ महीने बात आपका शरीर भी सुडौल होने लागेगा, इसमे एक अनूठी सुंदरता उतरने लगेगी | और एक बात याह रखे, जब भी आप खाना खा रहे होते है, तब अपने मन की बिलकुल भी न सुने, तुम्हारा शरीर तुम्हारे मन से ज्यादा होशियार है, भूक लगती है तोह शरीर पहले message दे देता है, मन तो उसका कुछ पता भी नहीं चलता, पैर मै चोट लगाती है तोह शरीर अपने आप message देता है | पेट भरते वक़्त, खाना खाते वक़्त अपने मन से ज्यादा अपने शरीर की सुने | शरीर की भी अपनी एक भाषा है, अपनी एक समझ है | शरीर जब बताये की अब पेट भर गया तब वही पर रुकें, बिलकुल भी, एक निवाला भी ज्यादा ना खाएं, शरीर की सुनें | और जागरूक रहें, होश बनाये रखें |


द्वितीय चरण –
यह चरण पहले से ज्यादा सुक्ष्म और बारीक़ है | जितना यह बारीक़ उतना जटिल भी | यह चरण कब शुरू हुआ आपको पता नहीं चलेगा | अगर इस चरण मै आप सफल रहें तो आप आगे आसानी से प्रविष्ट हो सकोगे | यह तल है मन का | जैसे जैसे तुम्हारे ध्यान की तीव्रता बढ़ेगी वैसे वैसे तुम अपने आप अपने मन को निरिक्षण करने लगोगे | खुद करनेसे यह पड़ाव नहीं आएगा, इसके लिए तुम्हे बड़ा होश रखना पड़ेगा | क्यूंकि यह थोडा बारीक़ है और जटिल है | जैसे जैसे तुम अपने physical movements, body movements observe करोगे, धीरे धीरे वैसेही तुम अपने मन के साक्षी होने लगोगे | जिंदगी मे पहली बार तुम्हे पता चलेगा की तुम सिर्फ mind नहीं हो, बलकी इससे भी बहुत ज्यादा हो | धीरे धीरे अपने मन के साक्षी बनें | मन को भी observe करें | मन मै विचार चलते रहेंगे, लेकिन तुम मात्र शांत होओगे | तुम्हारे भीतर बिलकुल शांति रहेगी, और तुम यह भी देखने लगोगे की मन तो विचार कर रहा है लेकिन तुम मात्र शांत हो, तुम मात्र सिर्फ द्रष्टा हो, इससे पृथक हो, अलग हो | इसमें बहुत अड़चने आ सकती है, एक तो यह की बचपन से हमें गलत शिक्षा दि गयी है, हमें पूरी तरह से mind से, अपने मन से जकड कर रखा है | जब भी तुम mind को observe करने लगोगे, तभी तुम्हारा mind अपनेसे उसपर टिपण्णी देने लगेगा, comments देने लगेगा | कुछ भी लहर आये, और मन चलने लगेगा | मन यह भी कह सकता है की देखो अब मेरा मन पूरी तरह से शांत है, अगर मन शांत है तो फिर यह कह कोण रहा है ? नहीं मन ने फिर धोका दे दिया | आप बस ध्यान मे डूबे, गहरे डूबे | और मन से साक्षी बनाना सीखे | जितनी देर तुम मन से अलग होकर, पृथक होकर रहोगे, तब तब तुम्हे एक बड़ा सुखद अनुभव होगा | लेकिन किसी चीज की अपेक्षा न रखे, अगर हो तो हो, ना हो तो ना हो |

तृतीय चरण - 
अब तुम अपने भीतर और भी ज्यादा प्रविष्ठ होने लगे, यह layer है feelings का | ध्यान मे जितने तुम भीतर उतरोगे उतनाही तुम्हे अपनी feelings ज्यादा स्पष्ट दिखाई पड़ने लगेगी आ जायेगा | अचानक कुछ याद आ जायेगा और तुम रो पड़ोगे, कुछ भी नहीं हुआ होगा मगर तुम अपने आप हंसने लगोगे | बहोत सारी भावनाओं का तुम एक समूह बन जाओगे | अब इसे भी देखना है, देखने का मतलब है की तुम इससे भी अलग हो, तुम सिर्फ द्रष्टा हो, देखने वाले हो | साक्षी होना ध्यान है | जितना तुम ध्यान करोगे उतनाही तुम्हारे भीतर करुणा उतरने लगेगी | ऊपर से देखने पर लगता है की तुम्हारे भीतर करुणा है, नहीं करुणा जन्म से नहीं मिलती, जन्मानि पड़ती है | छोटा बच्चा बैठे बैठे चींटिया मारता रहता है | क्या तुम्हे लगता है की उनके पास कोई करुणा होगी ? क्या उनके पास होई अत:ह्रदय होगा ? नहीं, यह सिर्फ और सिर्फ कुतूहल है | और एकी भी बहुत भावनाए है जितना जन्म सिर्फ ध्यान मै ही होता है | स्वभावत: पहली बार ऐसा घटित होने पर कुछ पता नहीं चलेगा की हो क्या रहा है ? मन कहेगा की चल तू वापिस, यह सब बकवास है | नहीं, मन की न माने | आप बस साक्षी होकर ध्यान मे रहे | और जितना भी प्रेम आपके ह्रदय मे उतरे, जितनी भी करुणा आपके भीतर उतरे, उसे सारे संसार मे उंडेल दे, बांट दे | 

कुछ मुश्किलें –
ऊपर से देखने पर बहुत सारी चीजें तुम्हे मुश्किल लगेगी, लेकिन याद रखना, सभी मुश्किलें तुमने खुद बनायीं हुई है, अपने पर लादी हुई है, इसलिए तुम बहुत आसानी से उनसे मुक्ति पा सकते हो | जैसे कोई पेड़ तुम्हे नहीं पकड़ता, तुम पेड़ को पकड़ते हो, और फिर चिल्लाये भी जातें हो की देखो इस पेड़ ने मुझे पकड़ा,  कोई मुझे बचाव इस पेड़ से, इस राक्षस से, ऐसे तुम्हारी मुश्किलें है, तुमनेही उन्हें पकड़ा है | ध्यान मै तुम्हे पहले मुश्किल आएगी, वह यह है की तुम्हारी आदतें |
आदतें -
             मेरे देखे आदत से बड़ी कोई मुश्किल नहीं है, यह रह पर का सबसे बड़ा पत्थर है, चट्टान है, पहाड़ है | तुमने न जाने कितने प्रकार की आदतें खुद को लगायी हुई है, अपने भीतर एक बड़ा जंजाल खड़ा किया है तुमने | साधारणत: सभी हमें यह समझाते है की बुरी आदतें न लगाये, अच्छी आदतें रखे | नहीं, आदत आदत है, न भली है न बुरी है | जब तक कोई भी आदत तुम्हारी मालिक है, वह गलत है, सभी आदतें मालकियत मै बुरी है, क्यूंकि तब तुम गुलाम हो | ध्यान मै प्रविष्ठ होते समय पहले तो अपनी आदतें छोड़ दे, छोड़नेकी कोशिश न करे, अगर तुम होश बनाये रखों तो फिर अपने आप आदत बदल जाएगी, तुम कोशिश मत करों, बस होश रखों, बाकि सब परमात्मा पर छोड़ दो, वह देख लेगा | तुम्हारा consciousness ही तुम्हे राह दिखायेगा | जैसे की तुमने अपने चलने की एक आदत बनाये रखी है, उसी ढंग से चलते रहते हो, क्या तुम एक machine हो या robot हो ? नहीं, इंसान बनाना सिखों, अपने चेतना के उचेंसे ऊँचे शिखर को छुओ | याद रखना, सोचना भी एक आदत है | अपने को परखें | सभी आदतों से आगे चले जाओ, उनके पार हो जाओ | अपने आप का तटस्थ निरिक्षण करो, और जागरूक हो जाओ | बाकि बातें मैंने ऊपर लिखी है, जगह जगह पर, छोटे छोटे points मै | आप उसपर चिंतन करें, और ध्यान मै उतरें, पुनरारुत्ति नहीं करता |

विपश्यना ध्यान –
ऊपर दि गयी बातें अगर आप बड़ी अच्छी तरह से याद रखें तो आपको ध्यान मै बहोत फायदा होगा, विपश्यना विधि १० दिन की है, यह दस दिन तुम्हारे पुरें जिवन के पुरें ढंग को बदलने के लिए , जिवन को बदलने के लिए समर्थ हो सकते है | तुमने आजतक अपने मन मै बहोत कूड़ा करकट भरा रखा है, तुम्हारी खेत मै फसल आनेकी कोई भी संभावना नहीं है, न फुल उगनेकी संभावना है | इसलिए यह समझ लीजिये की पहले ३ दिन तुम्हारे मन मै को कुछ भी कूड़ा-करकट है उसे साफ करनेके दिन है | दिन दिनों मै तुम्हारे मन मै जो कुछ भी बचपन से संस्कार के नाम पर डाला गया है वह सब तुम्हारे सामने आएगा | उससे लड़ें मत, सिर्फ देखते रहिये | इस समय आपका मन आपको बड़ा परेशान करेगा, आपको इस ध्यान प्रक्रिया से भागने का तक सुझाव देगा, लेकिन मन की मन पर ना लें, ध्यान करते रहिये | आगेके ३ दिन आपके भीतर बिज पेरनेके दिन है, अब जमीन ठीक हो गयी, अब बिज पेरने है, और सिर्फ बिज ही नहीं लगाने, उन्हें पाणी भी देना है, तुम्हारे भीतर का जो बिज है वह तुम्हे ही उगाना पड़ेगा, कोई दूसरा तुम्हारे लिए यह नहीं कर देगा | सिर्फ तुम भी तुम्हारे स्वामी हो, और कोई भी नहीं, या फिर और भी भीतर जाकर देखें को जब तुम भी नहीं बचते तब तुम तुम्हारे स्वामी हो जातें हो | लेकिन तब मैं का भाव नही रखता, मै खो गया अनंत मै, बूंद खो गयी सागर मै |
बाद के ३ दिन तुम्हारे भीतर फुल खिलनेके दिन है, तुम्हारी क्षमताएं अपार है, infinite है, यह तुम पर निर्भर करता है की तुम कितने फुल लगतें हो |
             अगर तुम गलत ना समझों तो मै तुम्हे बता दू, फुल का होना और काटें का होना तुम्हारे होने का ढंग है, तुम तो ना फुल हो और ना ही कांटा, तुम तो दोंनो के पार हो, जहाँ ना फुल बचाता है और न कांटा, बस अस्तित्व मात्र बचाता है | just being, or if you allow me to say, it is just beingness, it a non-ending spontaneous process.
           जब आप ध्यान करने को बैठे तब बिलकुल शिथिल होकर, बिलकुल अपने अंग को ढीला छोड़कर बड़े आराम से, in total relaxation, bodily and mentally बैठ जाए, धीरे धीरे अपने रीड की हड्डी पर, अपने spinal chord पर अपने पुरें शरीर को टांग दे, जैसे कोई खूंटी पर कोट टांग देता है, वैसे अपने खूंटी पर शरीर को टांग दे, और फिर न खूंटी की चिंता करें, और न कोट की | अब अपना ध्यान पूरी तरह से अपने साँस पर लाये, without any kind of tension and concentration, but with the awareness, just watch your breathing, as it is there. Don’t try to change your breathing at all, just watch, watch and watch. Watching is a key. As you see the breathing you will start feeling difference in your mind, that the thoughts are coming very slowly, and even slowly-slowly your breathing will become slower, and at a certain point you will feel like your breathing has stopped, and that will be the magical point of your being. But don’t try to do it by your own, even you try, you cannot do. Just go on watching your breathing as it comes.
For the first time just watch the breathing at your nose, when you became a completely aware of all the new senses at your nose, then start going into deeper, within your body. And remember, when you are watching your body from inside, you don’t know even the shape of your body, how you are going to know? All knowing is from the eyes, now it has nothing to do the eyes. और एक बात, जब भी आप ध्यान कर रहें है तब अपनी आँखे बंद रखे, तुमरे पुरे दिनचर्या की जिवन की लगभग सभी, around 80% energy तुम आँखों के द्वारा use करते हो, अब इस energy को बचाए, सारी उर्जा को अपने भीतर जाने मे लगा दे | कुछ ही दिनों मै तुम एक उर्जा के बड़े store बनोगे, लेकिन जीतनी भी उर्जा आये, उसे भीतर जाने मे ही उपयोग मै लाये, उर्जा के एक आभामंडल बन जाए, तुम्हारा जिवन बदलने का यह बडाही सुनहरा मौका रहेगा | इसलिए हर बुद्ध की मूर्ति की आँखे बंद है | इसका कारन बस इतना ही है की अब बाहर से मतलब न रहा, अब भीतर की आँख खोलनी है | ध्यान के दौरान आप चले तो भी अपनी आँखे सिर्फ अध:खुली रखकर चले | ताकि सिर्फ रास्ता दिखाई पद सके, और तुम रास्ते के साथ साथ तुम अपने को भी देखने मे और मदत होगी | और ध्यान मै जब भी तुममे आनंद उतरे, भीतर का गीत उतरें, जिवन का नृत्य उतरें, तब तब... उसे अस्तित्व के साथ बांट दे, उंडेल दे अपने पात्र को, फिर फिर आनंद आएगा, इस पुरे विश्व मै उसे बाँट दे | ध्यान मे उतरनेसे पूर्व अपनी नींद ठीक कर लें, क्यूंकि जब भी आप ध्यान मै relaxation महसूस करोगे, स्वभावता: तुम अपने आप मै नींद मै उतर जाओगे | विपश्यना ध्यान करते वक़्त नींद मे ना उतरे, कोई भी ध्यान तुम्हे सिर्फ जागना सिखाता है, alertness, awareness, consciousness सिखाता है | नींद तो तुम्हे बेहोशी मे ले जाएगी |  जब साँस लो एक लयबद्धता आएगी, अपने आप आएगी, आप उसे follow करें, साँस के साथ झूमें, लेकिन जागरुर रहकर, उससे प्रुत्थक रहकर, अलग रहकर | आगेका आप अपने आप हो जायेगा, वह हमेशा ही अपने आप ही होता है |
           ध्यान करते समय आपको बहुत अनुभव आयेंगे, ऐसे की जिंदगी मै कभी आपने न सोचे थे और न ही कभी सुने थे, लेकिन याद रखना, सभी अनुभव मन के है, शरीर के है, संवेदनाओ के है, स्वभावता: आपको उसका दर लगेगा, लेकिन डरना मत, उसके साथ झुंमे आनंद मनाये | उसे एक उत्सव की तरह स्वीकार करे | कभी कभी आपको ऐसा लगेगा की जैसे बिजली का झटका लग गया, कभी कभी आपको पैर ही नही है ऐसा प्रतीत होगा, हवा आये तो ऐसा लगेगा की तुम हवा के साथ बह न जाओ, ध्यान करते समय अपने आप हिलने का अनुभव हो सकता है, या फिर जमीन के ऊपर उड़ने का, या निचे जाने का अनुभव हो सकता है | व्यक्ति व्यक्ति पर अनुभव निर्भर करते है | आये या ना आये उनकी फिकर ना करें, आप बस ध्यान करतें रहिये | जागरुर रहिये, सबके प्रति द्रष्टा भाव, तटस्थ दर्शक बनकर रहिये |
           चौथे दिन आपको विपश्यना ध्यान विधि सिखाया जायेगा, इससे आगेके दिन आपके लिए बड़े महत्वपूर्ण है, बड़े होश से, ऊपर दि गयी सारी बातें बड़े ध्यान से, उसपर बड़ा चिंतन करने उसे अपने जिवन मै, अपने हड्डी, रक्त, मांस, मज्जा मै समा डालें, खूब ध्यान करें | ध्यान करते समय अपने मृत्रू की खबर रखे, जिवन की क्षणभंगुरता का एहसास अपने ह्रदय मै रखे, ध्यान का हर पल अगर आप अपनी जिंदगी का आखरी पल समझ का अगर सच मे ध्यान करें तो बहोत क्रांती हो सकती है | आपसे बड़ी आकांशा है |

आपका कल्याणमित्र,
सुयोग नाईकवाडे


(टिप – बहोत सारी बातें मैंने पीछे छोड़ दि है, जैसे जैसा समय आएगा, वैसे वैसा हम बढ़ते चलेंगे )

Friday, February 6, 2015

ओबामा ! आमच्या गावी पण याल ना ?

                      सगळीकडे बोंबाबोंब चालू होती, आमच्या देशात ओसामा येणार, आम्ही लई घाबरून गेलो ओ. पळता भुई थोडी झाली, लपायला जागा पण सापडेना. मग कुणीतरी एक शिकेल माणसानी आमाले सांगितलं कि आपल्या देशात ओसामा नाय तर ओबामा येणार हाय ! ओसामा तर कव्हाच मेलाय. ऐकलं तेव्हा जिवात जिव आला. पण मग म्हणलं मायला, हा माणूस असा हात हलवत येणार अन हात हलवत जाणार. त्याचं आमाले काय भो मिळणार ? न आमच्या शेतकऱ्यांचे आत्महत्या थांबणार, न मजुराला पगार मिळणार, न शेतकऱ्याला प्रत्येक पिकासाठी भाव मिळायसाठी आरडायचं थांबणार ? मग य्योबामा येणार तरी कशाला ? आशे लई प्रश्न मनात आले होते भो. पण.... अचानक ढगांचा गडगडाट झाला, विजा चमकल्या, आकाशवाणी झाली, आवाज आला ओबामांचा, ओबामा आम्हाला म्हणाले, “माय ब्रदर्स & सिस्टर ऑफ इंडिया”

            आता कोठे जिवात जिव आला, म्हटलं आपला मोठा भाऊ ओबामा आता आपल्या गावी पण येणार ! कधीतरी कुणीतरी आपल्या गावी येणार, नाहीतर election सोडलं कि आमच्या गावाकडं कुत्र पण बघत नाही. म्हटलं ओबामा आता गावाला येतील, भारतभरात कोट्यावधी लोक झोपडपट्यांमध्ये राहताय बघतील, ओबामा गावाला येतील, शेतकऱ्यांच्या हजारोंच्या संख्येने होणार्या आत्महत्या बघतील. तुमी गावाला आले असते तर कळल असतं, भारतीय माणसाच जीवन काय आहे ते. दिवसभर खचाखच भरलेल्या बसमधून, रेल्वेमधून कसातरी श्वास घेत प्रवास करणारे लाखो लोक दिसले असते. प्रत्येक रस्त्यावर दर ५०० मीटर वर अंगाला ठिगळे लावलेला, प्रचंड हलाखीत पडलेला भिकारी दिसला असता. कितीही शिक्षण झाले तरी नोकरी लागली नाही म्हणून पानटपरीवर आयुष्य घालवणारा बेरोजगार तरुण दिसला असता, ओबामा तुम्ही आले असते तर दाखवले असते सरकारी दवाखाने अन कार्यालये अन तिथल्या असुविधा.

            आज गेल्या ६५ वर्षात आम्हाला पहिल्यांदा कुणीतरी ब्रदर & सिस्टर म्हणालं, पण साहेब तुम्ही पुढं म्हणाले ‘ऑफ इंडिया (of India)’. मला पटल साहेब, एकदम. तुम्ही १००% खरं बोलले. आमचा इंडिया गेली कित्येक शतके ऑफच (OFF) आहे, तो कधी ऑन(ON) झालाच नाही. इथल्या धर्माच्या ठेकेदारांनी आम्हाला कधी ऑन होऊच दिले नाही. आम्ही हजारो वर्षे अंधश्रद्धेत पडलो होतो, असाच कुणीतरी महात्मा फुले होऊन जातो, कुणीतरी शाहू महाराज, कुणीतरी बाबासाहेब आंबेडकर होऊन जातो, आम्हाला शिक्षण मिळाव म्हणून यांनी जीवन खर्ची घातले, पण आम्हाला सध्याच्या शिक्षणातून ह्या व्यवस्थेने, ह्या राजकारण्यांनी, ह्या धर्मांध लोकांनी आम्हाला शिक्षणातून फक्त अंधश्रद्धाच दिल्या. पुन्हा कोणीतरी हि अंधश्रद्धा निर्मुलन करायला दाभोळकर जन्मावा लागतो, पण चार-दोन दिवसात त्यांचाही खून होतो. खरंच ओबामा आमचा देश ऑफच आहे. त्याला ऑन करायला कितीतरी बुद्ध झाले, महावीर झाले, चार्वाक झाले, शिवाजी, संभाजी, नानक, तुकोबा, ज्ञानोबा, नामदेव, कबीर, मीरा, चैतन्य, सम्राट अशोक, जनाई, जिजाऊ, सावित्री, अहिल्या, निऋती कित्येक कित्येक लोक आले आणि गेले. पण आमचा देश ऑफच राहिला. आजचे तरुण म्हटलं जरा शिकलेत ते तरी ऑन होतील, पण नाही, ते फक्त TV वरच्या जगाला भूललेत, hypnotise झालेत, अन मानसिक रोगी झालेत. जे TV वर दाखवलं ते त्यांनी खरं समजलं, जे TV वर दाखवलं ते त्याचं आदर्श झालं, यान्ला फक्त screen play चा psychological disease झाला. ओबामा तुम्ही बोलले त्यात मला सुधारणा करावी वाटते, तुमचं वाक्य असं हवं होत – My Brothers and sisters of ‘OFF India’. मग ते खरं झालं असतं. तुम्ही आलेत आता जरा बर वाटलं, कदाचित तुमची प्रेरणा घेऊन तरी आमची हि OFF  तरुणाई  ON  होईल आणि पेटून उठेल. पुन्हा एकदा सृजनासाठी, पुन्हा एकदा समृद्धीसाठी, पुन्हा एकदा एल्गार करेल एका नव्या स्वातंत्र्यासाठी, स्वयंप्रकाशित होण्यासाठी.

            ओबामांच्या येण्याने आमच्या देशातील तरुणींना स्फुरण आणि प्रेरणा भेटेल हे नक्कीच आहे पण प्रश्न आहे कि कोणत्या तरुणींना ? या देशाचे दोन भाग झालेले आहेत, एक India आणि दुसरा भारत, एकीकडे २५% India सर्व सुखसुविधांमध्ये जगात आहे, ऐशोआरामात जीवन व्यतीत करतो  आहे आणि ७५% समाज आपल्याच व्यथांमध्ये हलाखीत पडला आहे. हा समाज खेडोपाडी कसातरी जगतो आहे. भारतात ४०% लोक हे एकवेळ उपाशी पोटी झोपतात हे भयानक सत्य सतत लपवलं जात आहे. म्हणून प्रश्न पडतो कोणत्या तरुणी पुढे चालल्या आहेत ? २५% कि ७५% आज भारत स्वतंत्र होऊन इतके वर्ष होऊन देखील भारताच्या सामाजिक ‘ढाचा’ मध्ये ‘बुनियादी’ म्हणावा असा कोणताही बदल झालेला नाही. आजही भारतात ६०% महिलांना उघड्यावर सौचास जावे लागते, आजही भारतातील दर १० पैकी ५ मुलींचे अल्पवयातच लग्न लावले जात आहे, आज रोजसोज हुंडाबळी, domestic violence ला शारीरिक किंवा मानसिकरित्या कितीतरी महिलांना सामोरं जाव लागत आहे. अन उरल्या सुरल्या महिला देखील किती सुरक्षित आहेत हे सर्वांनाच ठाऊक आहे. आज ९०% ते ९५% महिला निर्भीडपणे सांगू शकत नाही कि उद्या येणारा दिवस हा त्यांच्यासाठी सुरक्षिततेचा असेलच. उद्याच्या दिवशी माझ्यावर कोणत्याही प्रकारचा एकही शारीरिक/मानसिक torcher किंवा अपमान होणार नाही अशा किती टक्के महिला सांगू शकतील ? आणि ह्या सगळ्याचं प्रमाण रोजसोज वाढतच चाललं आहे. कोणताही paper (वृत्तपत्र) हाती घेतला कि दुसऱ्या कोणत्या बातम्याच वाचायला भेटत नाहीये. माफ करा ओबामा भारतीय महिला प्रगती करत आहेत हे जरी वाटत असलं तरी ते प्रचंड पोकळ आणि वरवरच आहे. आतमध्ये ज्वलंत वास्तविकता वेगळीच आहे. आज रस्त्याने एकतरी तरुणी मोकळेपणाने फिरू शकते का ? सतत चारित्र्य, संस्कार, शील या प्रचंड वजनी शब्दांच्या माराखाली त्याचं जगन कठीण होऊन चालल आहे, मग भारतीय महिला, मुली, तरुणी स्वतंत्र आहे हे मी कसं म्हणावं ? खरंच या जगण्याला जीवन म्हणावं ? ज्या जिवनात अजिबातही जिवंतता नाही त्या जगण्याला जगणं तरी कसं म्हणावं ?

            हा virus भारतभर प्रचंड प्रमाणात पसरला आहे ओबामा साहेब ! म्हणून तर तुम्ही फक्त तीन दिवस भारतात आले अन तुमचं ६ तासांनी आयुष्य कमी झालं. मग इथे राहणाऱ्या लोकांच काय ? यांच्या जगण्याच काय ? ओबामा तुम्हाला एकाच विनंती करू इच्छितो, आमच्या गावाला याल त्यावेळेस येताना स्त्रियांसाठी स्वतंत्रता, स्त्रियांबद्दलचा आदर, सर्वांसाठी जीवनउपयोगी वस्तू (कमीतकमी) थोडंस आरोग्य, थोडीशी श्रीमंती, मनाची पण आणि आर्थिक पण, थोडासा आपुलकेपण, थोडीशी विश्रांती आणि थोडीशी भारतीय लोकांसाठी बुद्धीही घेऊन या. नाहीतर ह्या ऐतखाउंना काही आणण्याऐवजी तुम्ही फक्त एक विद्रोहाची ठिणगी घेऊन या, ज्यात हा समाज, तरुण व्यक्तीनव्यक्ती पेटून उठेल बंड करण्यासाठी जुना कचरा साफ करण्यासाठी आणि नवीन निर्मितीसाठी.

आणि आपण भारतीयांनी तरी जरा स्वतःची लाज वाटूद्या, आपण असल्या अवस्थेत राहत असताना देखील याबद्दल आपल्याला थोडीशीही शंका येऊ नये ? थोडीशीही चीड येऊ नये ? खरं आहे, म्हणतात ना, नाली का किडा नाली मे मजे से जीता है | आपण भारतीय सगळे नाली चे किडे झालेलो आहोत काय ? याचा विचार आता करावा लागेल. आज अमेरिकेसारख्या देशाचा राष्ट्राध्यक्ष सुद्धा भारताकडे येतो त्यावेळेस हात हलवत, स्वागत करत प्रसन्न मनाने येतो आणि जात्या वेळेस यांची दयनीय अवस्था बघून अक्षरशः हात जोडून जातो, एव्हडच नव्हे तर भारतीय व्यवस्थेचा इतका धसका (!) घेऊन जातो कि त्याचे आयुष्य ६ तासाने कमी होते. थेट (!)

            या वेळेस चूक झाली साहेब, पण आता आम्ही थांबणार नाही, तुम्ही आमच्या चुका लक्षात आणून दिल्यात. आता आम्ही नक्कीच सुधारणा करणार एका नव्या स्वातंत्र्यासाठी, सृजनासाठी, स्वयंप्रकाशित होण्यासाठी तोपर्यंत ओबामा, मला स्वतःची लाज वाटतंच तुम्हाला म्हणावं वाटतं आहे, ओबामा ! आमच्या गावी पण याल ना ?

                                                                                                                        १/२/२०१५

-           सुयोग कल्पना बाळासाहेब नाईकवाडे

Friday, January 30, 2015

नको, गनिमी कावा नकोच !

             नको, गनिमी कावा नकोच !

काल परवा पेपरला बातमी वाचली, घटना बघितली, अनेक प्रतिक्रिया मनात आल्या, काय झाल ? का झालं ? काय कारण ? खरच हेच कारण असाव का ? असे अनेक विचार मनात आले. एक मित्राकडून video पण बघायला मिळाले, मन फार कळवळून आले. अन खूप दिवसानंतर हातात पुन्हा लेखणीचे शस्त्र घ्यावे वाटले.
          होय मी लातूरला झालेल्यागनिमी काव्याबद्दलबोलतोय. आज महाराज असते तर.....? ह्या असल्या भानगडीत मला पडायचे नाहीये, पण आज तथाकथित गनिमी काव्यावाले माझासमोर आले असते तर नक्कीच मी त्यांच्या कानाखाली लावली असती. इथे महाराजांचा शिव-कावा (गनिमी कावा) आणि ह्या अक्कलशुन्यांनी घेतलेला त्याचा तथाकथित अर्थ याच्याशी सध्या तरी मला तटस्थ राहायचे आहे, त्यावर अनेक जन बोलले आहेत, अनेक विचारवंतांनी आपली अक्कल त्यासाठी पाजळली आहे, मीपण ते करण्यात वेळ वाया घालविणार नाही. थोडक्यात इतकंच कि महाराजांच्या युद्धतंत्राचा समाजसुधारणेचा ठेका घेतलेल्यांनी चुकीचा अर्थ काढला हे नक्कीच आहे, एव्हडेच नव्हे तर त्यांचा शिवाजी महाराजांबद्दल किंचितही अभ्यास नाही हे तर स्पष्टच आहे.
          मला वाटतं, ह्या सगळ्या प्रकारात त्या दोन्हीही गटांची अजिबात चूक नाहीये, चूक आहे ती आपल्या समाजव्यवस्थेची, सगळीकडे गनिमी काव्याच्या त्या मुलांना नाव ठेवलं जात आहे, त्यांना दोषी ठरविलं जात आहे, पण मला थोडीशी त्या मुलांची (मुर्खांची) बाजू घ्यावी वाटते. त्यांनी केलेल्या कृत्याच्या मी अजिबात समर्थनार्थ नाहीये, अजिबात नाही, पण तरीही मी जराशी त्यांची बाजू घेऊ इच्छितो. मी बोलतोय त्याबद्दल गैरसमज होऊ शकतो म्हणून मी आधी काही गोष्टी स्पष्ट करू इच्छितो
स्वतःच ठेवायचं झाकून आणि दुसर्याच पहायचं वाकूनअसली सवय असलेला भारत हा सर्वात अग्रेसर देश आहे, आणि आपले सगळे समाजसुधारक (!) तथाकथित क्रांतिकारक (?) फक्त आम्हीच तेव्हडे परिवर्तनवादी म्हणविणारे स्वयंघोषित भारतमातेचे पुत्र (!) असे सर्वच्या सर्व या प्रकारात मोडतात, हे सर्व एकाच नाण्याच्या दोन बाजू आहेत, लातूरला एक बाजू उघडी झाली म्हणून वावगे वाटू देऊ नका, लवकरच दुसरी बाजूदेखील वर येईल. मला वाटतं ह्या घटनेच्या पूर्ण मुळाशी गेल्याशिवाय आपल्याला अशी विकृती उपटून काढता येणार नाही, खरंतर का व्हाव असं ? स्पष्टच बोलायचं झाल तर मानसिक विकृती (mental disorder) यापेक्षा वेगळ काही नाही.
मुल वयात यायला लागली कि समाजात घाण करणारे सर्वच्या सर्व (एकही अपवाद वगळता) सामाजिक (?) संघटना डोके वर काढायला लागतात, या वयातील मुलांमध्ये आपसूकच नवीन उर्जा फुलत असते, मग यांना समाजाचे थोडेसे डोस पाजून, समाजसुधारणा, देशपरीवर्तन, महामानवांना अपेक्षित समाज (!) निर्माण करण्याचा ठेका घेतलेले सर्वच्या सर्व संघटना एकाच वेळेस डोके वर काढायला लागतात, मग जो-तो आपल्या कुवतीनुसार ज्या-त्या मुर्खासोबत आपला ताळमेळ बसवून घेतो, आणि मग हा सगळा खेळ सुरु होतो. गेल्या ५००० वर्षात आपण जगभरात १५,००० युद्धे केलेली आहेत, त्यात छोटीमोठी तर सोडलीच. एव्हडच नव्हे तर आपण संपूर्ण जगालाच दोन महायुद्धांत ढकलले, आणि आता निर्लज्जपणे तिसर्याची वाट बघतो आहे.
लातूरला गनिमी काव्यात कामी आलेले निकामीच अश्या घटनांसाठी कारणीभूत ठरतात, पण हे फक्त दृश्य स्वरूप आहे, यामागे मूळ कारण आहे तो आपला सामाजिकढाचा’, समाजव्यवस्था. गेली ५००० वर्षे आपण तोच-तोच कचरा वाहत चाललो आहे. त्यातून प्रचंड दुर्घंद येत आहे, त्यात महामारी झाली आहे, कितीही किडे पडले आहेत, तरी आपण अजूनही त्याला डोक्यावर घेतच आहोत, कारण का तर कचरा आपला आहे ! जोपर्यंत आपण सर्वच समाजव्यवस्था बदलत नाही, तोपर्यंत अश्या घटना घडतच राहणार. आजपर्यंत जगाचे जे काही नुकसान झाले आहे ते फक्त समूहाने, गर्दीने, कळपाने केलेले आहे, म्हणून जोपर्यंत समाजात गर्दी, कळप असतील तोपर्यंत अशा घटना आता वाढतच जाणार आहेत. हे फक्त trailor होत, असली picture तो अभी बाकी है |
आपल्या प्रत्येकालाच आपली हि मानसिकता बदलावी लागेल, का म्हणून आपण इतरांच्या personal fare मध्ये interfare करायचं ? कोणी आपल्याला तो हक्क दिला आहे ? आपण आपले बघावे एव्हडच. मी तर म्हणेल, तुमच्या life चे सगळे problems clear झाले का ? कि तुम्ही इतरांचे solve करायला निघालेत ? तुम्ही काय ठेका घेतला आहे का ? किती विकृत मानसिकता आहे हि ! आपण कुणाला त्याचे वैयक्तिक स्वातंत्र्यहि देऊ शकत नाही ? आणि आपणही स्वतंत्र राहू शकत नाही ? कोणताही समाज जोपर्यंत संपूर्णतः व्यक्तिस्वतंत्र होत नाही. तोपर्यंत त्या समाजाची मानसिक प्रगती होऊच शकत नाही. चीनमध्ये एक कथा प्रसिद्ध आहे, लाऊत्झो नावाचा विचारक हा जन्मता: म्हातारा होता, तो म्हाताराच जन्माला आला. मला ती कथा खरी वाटते, कारण मी भारतीय समाजाकडे बघितलं तर मला वाटत हे वचन खर आहे. इथे प्रत्येक भारतीय जन्माला येताना म्हातारा म्हणूनच जन्माला येतो कि काय असं वाटत. इथे वर्षाच्या मुलाची वैचारिक बुद्धीची तुलना केली तर ती अक्षरशः ६५ वर्षाच्या म्हतार्यापेक्षा अधिक आहे. बुद्धीचा वापर करणे जणू आपल्या कायद्यातच नाही कि काय अशी अवस्था आहे. वस्तू किंवा एखाद खाद्यपदार्थ जितकं जुनं होत जात. तितकं ते सडत जात, तितकं ते घाण होत जात. तितकी त्यातली पौष्टिकता कमी होत जाते. त्यातले जीवनसत्व कमी होतातच, अन त्यात किडे पडायला लागतात. आपल्या समाजात देखील असे अनेक किडे पडले आहेत, पण तरीही आपण आजदेखील फक्त जुनं-जुनं आहे म्हणून त्याला डोक्यावर मिरवत आहोत.
जीवन हा प्रवाह आहे, थांबल कि डबकच तयार होत. आपला समाज गेली कित्येक शतके डबक्यात आहे, त्या डबक्यात गनिमी काव्यासारखे लाखो किडे वळवळत आहेत. स्त्री-मुक्तीचा ठेका घेतलेली अपर्णा रामतीर्थकर असो, कि घरोघरी भांडणे लावणारी एकता कपूर असो, घरोघरी चार-चार, दहा-दहा पोरं जन्माला घालून आणखी कचरा निर्माण करायला प्रवृत्त करणारे धर्मगुरू (!) असो हे सर्व एकाच समाजव्यवस्थेचे वेगवेगळे पैलू आहेत, मुलतः हे आतून एकाच मनोवृत्तीचे आहेत, अन बाहेरून फक्त मुखवटे पांघरलेली आहेत. अन जोपर्यंत आपण यांचे मुखवटे फाडून त्यातली असली मनोवृत्ती बदलत नाहीत तोपर्यंत भारतीय समाजाचे वाटोळे ठरलेलेच आहे.
          मुलतः हि घटना झाली ती फक्त आणि फक्त दुसर्याच्या ताटात डोकून बघायच्या घाण सवयीमुळे. कोणी दिला आहे तुम्हाला अधिकार दुसऱ्याच्या personal matter मध्ये डोकावण्याचा ? तुम्हीच काय तेव्हडे समाजसुधारक का ? मी तर याहीपुढे जाऊन म्हणेल, रस्त्याने कोणी किंवा बागेत किंवा एखाद्या निसर्गरम्य ठिकाणी जर कोणी प्रेमी युगुल एकमेकांचे चुंबन घेत असले तरी काय हरकत आहे ? एव्हडच नाही तर, कुणी कुणासोबत प्रणयात रममाण व्हायचे हा ज्याचा त्याचा वैयक्तिक आणि खाजगी प्रश्न आहे. आपणाला मध्ये यायचा काही एक हक्क नाही, अधिकार नाही. आपण त्यांचे स्वातंत्र्य हिरावून घेत आहोत. ते प्रेमामध्ये आकंठ आहेत. त्यांनी तुम्हाला कसला त्रास दिला आणि त्यांनी तुमच्याशी काही समंध ठेवला आहे. मग तुम्ही कोण लागून जाता त्यांच्या वैयक्तिक गोष्टीत डोकं घालणारे. मुलतः हि असली प्रवृत्ती म्हणजे मानसिक आजार आहे, it’s a psychological disease. पण आपल्याकडे सर्वांना हा आजार झाला असल्या कारणाने कुणीच लक्षात घेत नाही. आपण सर्वच या आजाराला बळी पडलेलो आहोत.
          एकीकडे आपण घसा फाटेपर्यंत बोंबलत राहायचे jesus ने शिकवण दिली, God is Love. मग प्रेमी म्हणजे देवदूतच झाले नां ? मग तुम्ही देवदूतांना विरोध करता ? लाज कशी वाटत नाही ? आपण तर एकीकडे म्हणतो जगात कोणतीच गोष्ट वाईट नाहीये, ज्या परमात्म्याने हे विश्व निर्माण केलं तो वाईट गोष्ट निर्माण करूच कशी शकेल, म्हणून तर आपण  कामाला (sex)  देखील अत्यंत पवित्र म्हटले आहे. प्रतिक म्हणून आपण देवही तयार केला आहे, ज्याला नाव दिलं कामदेव. म्हणजेच काय तर काम (sex) सुद्धा देव आहे.  जर काम देव आहे तर मग देवाला का विरोध ? प्रेमाला तर नकोच नको, कामाला सुद्धा नको. इसिलीये तो कहते है ना, काम हि राम बनता है | जर देवाने मला निर्माण केले असेल, तर मी केलेल्या सर्व चुकांना जबाबदार देवच आहे. जी काही चूक माझ्या हातून होईल त्याचा मुख्य सूत्रधार तर तोच राहील, कर्ता-करविता तोच असेल मग मी का चिंता करू ? आणि याहीपेक्षा इतरांनी का चिंता करावी माझ्या आयुष्याची, त्यांनी त्याचं बघावं, आणि तेव्हड बघितलं तरी खूप झाल. म्हणून तर देव मुल जन्माला घातलाना एकट्यालाच घालतो. या जगात जे काही निर्माण होत ते एकट आणि स्वतंत्र निर्माण होत. अस्तित्वाला यातून इतकंच सांगायचं असतं कि, तू आलाही एकटा आहेस, आणि तू जाणारही एकटा आहेस. तू फक्त तुझ कर्तव्य साध्य कर, तू तुझाच शोध घे, फक्त तुझाच हो, आणि ज्या दिवशी तू खरोखरच तुझा होशील त्या दिवशी हे संपूर्ण अस्तित्व तुझ होऊन जाईल, आणि तुही या अस्तित्वाचा होऊन जाशील. थेंब सागरात विलीन होऊन जाईल.
या सर्व गोष्टी कशा थांबवायच्या ? कुणी थांबवायच्या या सर्व भानगडीत तुम्ही पडूच नका, मला वाटत तुम्ही फक्त तुमचंच वैयक्तिक स्वतंत्र बघा. इतरांना त्रास होऊ देता, आणि तेव्हडच खूप झाल. तुमच्यावर फक्त तुमची स्वतःची जबाबदारी आहे. तेव्हडिच फक्त निभावली तरी परमात्मा तुम्हाला धन्यवाद देईल. हे एक निर्विवाद सत्य आहे. काही गरज नाही, समाज सुधारण्याचा तथाकथित ठेका घेण्याची, काही गरज नाही स्वतःला परिवर्तनवादी म्हणवून घेण्याची. क्रांतीकरण खूप झालेत, आणि प्रत्येक क्रांतीकारकाने जगाचं फक्त नुकसानच केलं आहे. तुम्ही फक्त स्वतः एक विद्रोही म्हणून जगलात तरी खूप झाले. धर्माचे ठेकेदार आणि परिवर्तनाचे तथाकथित ठेकेदार हे दोन्ही या एकाच नाण्याच्या बाजू आहेत, आणि हेच एकमेव सत्य आहे. समाज बदलण्याच खूळ डोक्यातून काढून टाका. समाज कधी बदलाल होता आणि कधी बदलेल. ‘बदलतात ते व्यक्ती.’ आणि हि totally individual process आहे. प्रक्रिया आहे. तुम्ही फक्त स्वतःला बदलत राहा, vast होत राहा. वैश्विक होत राहा, त्यातच जीवनाचा सार आहे.
          याला कोठेही अन्यथा नाहीये, नाहीतर हे सगळे प्रकार पुढेही चालूच राहणार, आणि आपण आता अशा ठिकाणी येऊन पोहोचलो आहे, एकतर आपल्यालाबदलनाहीतरमरणदोन्हीपैकी एक समोर आहे. आताच सावध व्हा आणि स्वतःला फक्त स्वतःला बदला, फक्त स्वतःचे व्हा.

                                                                                      २४//२०१५
                                                                             सुयोग नाईकवाडे



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